बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 राजनीति शास्त्र
प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के उदारवादी चरण की विचारधारा, कार्यपद्धति, माँगें, सीमाओं के आलोक में मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के उदारवादी राष्ट्रवादियों की विचारधारा एवं कार्य पद्धति-
अपने इतिहास के प्रारम्भिक 20 वर्षों मे कांग्रेस की राजनीति को मोटे तौर पर नरमपथी कहा जाता है। कांग्रेस के उदारवादी नेता दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, रानाडे, गोखले, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि अधिकतर अंशकालिक राजनीतिज्ञ थे जो अपने-अपने निजी जीवन में सफल एवं पेशेवर थे। उदारवादी अंग्रेजों की न्यायप्रियता में विश्वास रखते थे फलतः उन्होंने आन्दोलन के संवैधानिक तरीके को अपनाया। वे ब्रिटिश ससद एवं जनता पर पूरा-पूरा भरोसा करते थे। उनकी शिकायत केवल भारत में वायसराय एवं उसकी कार्यकारी काउसिल व आग्ल-भारतीय नौकरशाही द्वारा कायम किये गये एक 'अ-ब्रिटिश राज्य' के खिलाफ थी जिसे प्यार से समझा-बुझाकर दूर किया या सुधारा जा सकता था। इन उदारवादी बुद्धिजीवियों ने ब्रिटिश शासन को भारत में एक वरदान के रूप मे ग्रहण किया। एक आदर्श शासन-व्यवस्था के लिए ब्रिटिश लोकतंत्र की तस्वीर उनके सामने थी। उनका दृढ विश्वास था कि भारत में अंग्रेजी शासन धीरे-धीरे एक प्रगतिशील लोकतांत्रिक राष्ट्र की ओर बढ़ेगा, इसलिए संवैधानिक क्षेत्र मे नरमपथी राजनीति ने कभी ब्रिटिश साम्राज्य में पूर्ण अलगाव की कल्पना नहीं की। वे केवल साम्राज्यिक ढाँचे के अंदर सीमित स्वशासन चाहते थे। वे शान्तिपूर्ण एवं रक्तहीन संघर्ष में विश्वास रखते थे। उदारवादियों को भारतीय जनता की क्षमता पर विश्वास नहीं था। उनका मानना था कि जनता का अधिकांश भाग अज्ञान से भरा हुआ तथा विचार एवं भावना के पुराने तरीकों से चिपका हुआ है। अतः जनता को आन्दोलन में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। आरम्भिक राष्ट्रवादी ब्रिटिश सरकार तथा ब्रिटिश जनमत को प्रभावित करना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने ब्रिटेन में जमकर प्रचार कार्य किया ताकि आरम्भिक राष्ट्रवादियों द्वारा सुझाये गये सुधारों को लागू किया जा सके। उदारवादियों ने प्रार्थना पत्रों, समाओं, प्रस्तावों तथा भाषणों द्वारा अपनी माँगों को ब्रिटिश तक पहुँचाने का माध्यम बनाया।
प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) की माँगें -
1. संवैधानिक माँगें- उदारवादी विधायिकाओं में भारतीयो की भागीदारी में वृद्धि उदारवादियों के प्रयास से 1892 का इंडियन कौंसिल एक्ट पारित किया गया तथा 1893 में 'हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत एवं लंदन में साथ-साथ परीक्षा लिए जाने के सम्बन्ध में एक विधेयक पारित किया गया। उदारवादियों के अथक प्रयासों से भारतीय व्यय की जाँच के लिए 'बेल्बी कमेटी की नियुक्ति की गई तथा उदारवादियों ने बाद की अवधि के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए एक ठोस आधार तैयार किया।
प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों की सीमायें - उदारवादियों ने अपने आन्दोलन को शिक्षित मध्यम वर्ग तक सीमित रखा तथा आम जनता की ताकत को समझने में असफल रहे तथा वे लम्बे समय तक ब्रिटिश के वास्तविक स्वरूप को समझने में भी असफल रहे एवं अंग्रेजों की साफगोई में विश्वास करते रहे। अपने अभिजातवर्गीय स्वरूप के कारण आरम्भिक राष्ट्रवादियों द्वारा किसानों के प्रश्नों पर एक तार्किक रुख नहीं अपनाया जा सका। उन्होंने केवल जमींदारों के हित में स्थायी बंदोबस्त के विस्तार की माँग की तथा उदारवादियों के समूह में शामिल व्यापारिक प्रतिनिधियों ने कांग्रेस को मजदूर समर्थक रुख अपनाने से रोका तथा उन्होंने फैक्ट्री सुधारों का विरोध किया।
मूल्यांकन- प्रारम्भिक कांग्रेसी नेताओं एवं भागीदारों की प्रकृति एक सामाजिक संरचना में निहित था तथा वे अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे। फलतः उन्होंने अंग्रेजी शासन को खराब नहीं माना बल्कि उस शासन को दोषपूर्ण माना जो अ-ब्रिटिश था। अतः इस शासन में सुधार पर बल दिया। दूसरी बात यह कि आरम्भिक राष्ट्रवादी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि भारत अभी हाल में ही एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में पहुँचा है अर्थात् एक नवोदित राष्ट्र है और भारत के इस राष्ट्रीय स्वरूप को बहुत सावधानी से निखारने की जरूरत थी। आरम्भिक राष्ट्रवादियों ने अपनी राजनीतिक तथा आर्थिक माँगों का निर्धारण इस बात को दृष्टि में रखकर किया कि भारतीय जनता को एक साझे राजनीतिक-आर्थिक कार्यक्रमों के आधार पर संगठित करने की आवश्यकता है।
कुछ आलोचकों का विचार है कि राष्ट्रवादी आन्दोलन और आरम्भिक राष्ट्रवादियों को अधिक सफलता नहीं मिली। जिन सुधारों के लिए राष्ट्रवादियों ने आन्दोलन छेड़े वे पूरे नहीं हुए। ये उदारवादी भारतीय जनमानस से लोक समर्थन जुटाने में असफल रहे। लेकिन यह कहना चाहते थे कि उन्होंने पश्चिमोत्तर प्रांत एवं पंजाब में नयी काउसिलें, वायसराय की कार्यकारी काउंसिल में दो भारतीय सदस्यों की नियुक्ति एवं कनाडा एवं आस्ट्रेलिया के समान भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन स्वशासन की माँग की।
2. प्रशासनिक सुधार या माँगें- उदारवादियों की माँग थी कि लोकसेवा में भारतीयों को अधिकाधिक भर्ती का अवसर दिया जाये अर्थात सिविल सेवा का भारतीयकरण किया जाये तथा आई. सी. एस. की परीक्षा का इंग्लैण्ड एवं भारत में एक साथ आयोजन किया जाये एवं इन परीक्षाओं में बैठने की आयु सीमा बढ़ाई जाये। उदारवादियों की माँग थी कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक किया जाये जिससे पुलिस तथा नौकरशाही के मनमाने अत्याचारों से जनता सुरक्षित रहे। उन्होंने ज्यूरी की शक्तियाँ कम करने का विरोध किया। शस्त्र अधिनियम की समाप्ति की माँग की तथा जनता को अपनी तथा अपने देश की रक्षा के लिए शस्त्र रखने की अनुमति देने की माँग की। उदार राष्ट्रवादियों ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार एवं तकनीकी तथा उच्च शिक्षा हेतु अधिक बजट प्रावधान की माँग की। साथ ही सरकार से जनकल्याणकारी गतिविधियों पर अधिक ध्यान देने की माँग की, सूदखोरों के चंगुल से किसानों को बचाने के लिए कृषि बैंकों की स्थापना की माँग की। आरम्भिक राष्ट्रवादियों ने देश को अकाल से बचाने के लिए बड़े पैमाने पर सिंचाई की योजनाये लागू करने की तथा नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की माँग की।
आर्थिक सुधार- उदार राष्ट्रवादियो ने भारतीय उद्योगों की सुरक्षा के लिए संरक्षणवादी नीति, नमक कर, जमीन की मालगुजारी कम करने तथा स्थायी बन्दोबस्त को देश के अन्य भागों में लागू करने, सैन्य व्यय में कटौती एवं धन की निकासी को रोकने की माँग की तथा साथ ही साथ उन भारतीय मजदूरो के पक्ष में सुविधायें देने की माँग की जो गरीबी से त्रस्त होकर रोजगार की तलाश में दक्षिण अफ्रीका, मलाया, मॉरीशस, वेस्टइंडीज आदि देश चले जाते थे।
प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों की उपलब्धियाँ - प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों ने भारतीय जनमानस में एक व्यापक राष्ट्रीय जागरण को जन्म दिया ताकि उन्हें राजनीतिक कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। लोगों के बीच लोकतंत्र एवं राष्ट्रवाद की भावना को लोकप्रिय बनाया। ब्रिटिश साम्राज्यवाद एवं उसके शीर्षक उपनिवेशवादी चरित्र को प्रकाश में लाया। उन्होने उपनिवेशवाद की एक आर्थिक समालोचना पेश की जिसे प्रायः आर्थिक राष्ट्रवाद के नाम से जाना जाता है। यह सिद्धान्त राष्ट्रवादी आन्दोलन के परवर्ती कालो में आन्दोलनों का एक प्रमुख मुद्दा बना। यह कहना उचित नहीं है कि आरम्भिक राष्ट्रवादियों के। आन्दोलन असफल हो गये क्योंकि ऐतिहासिक दृष्टि से तत्कालीन कठिनाइयों के मद्देनजर उन्होंने जो कार्य अपने हाथ में लिया था वह अपने आप में महत्वपूर्ण था। व्यापक राष्ट्रीय जागृति लाने तथा साम्राज्यवाद के रूप में एक साझे शत्रु के अस्तित्व के प्रति जनता को जागरूक कर उनको एक राष्ट्र के रूप में एकताबद्ध किया। ब्रिटिश शासन के साम्राज्यवादी चरित्र को निर्ममतापूर्वक उजागर करने में आरम्भिक राष्ट्रवादियों ने महती भूमिका निभायी। उदारवादियों ने इस राजनीतिक सत्य को उद्घाटित किया कि भारत का शासन भारतीयों के हित में चलाया जाना चाहिए। आरम्भिक आन्दोलन की कमजोरियों को तो बाद की पीढियों ने दूर कर दिया और उसकी उपलब्धियाँ आगे के वर्षों मे एक और जोरदार राष्ट्रीय आन्दोलन का आधार बन गई। इसलिए हम कह सकते हैं अपनी तमाम कमियों के बावजूद आरम्भिक राष्ट्रवादियों ने यह बुनियाद बनायी जिस पर राष्ट्रीय आन्दोलन आगे और भी विकसित हुआ। इस प्रकार यह सत्य है कि आरम्भिक राष्ट्रवादियों ने जनमानस के अन्दर राष्ट्रवाद की भावना भरने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया तथा आगे चलकर लोगों में देश प्रेम की भावना जागृत हुई तथा तीव्र राष्ट्रवाद की भावना का उदय हुआ और ब्रिटिश सरकार के प्रति पैदा हुआ अविश्वास धीरे-धीरे विदेशी सरकार के प्रति राजनीतिक विरोध की शक्ल लेने लगा। 20वीं सदी के राष्ट्रवादियों ने उपनिवेशवादी अर्थतंत्र के आरम्भिक राष्ट्रवादियों के किये गये विश्लेषण को अपने आन्दोलन का मुद्दा बनाया। गाँधी युग में भारत के शहर-शहर, कस्बे कस्बे तथा गाँव-गाँव में आन्दोलनकारियों ने विदेशी शोषण के चक्र के प्रति लोगों को जागरूक किया तथा राष्ट्रवादियो ने सुदृढ जनसंघर्ष और जन आन्दोलन चलाये। इस तरह प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों की विचारधारा ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
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- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रवाद के उद्भव और विकास के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के उदारवादी चरण की विचारधारा, कार्यपद्धति, माँगें, सीमाओं के आलोक में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्म के संदर्भ पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काँग्रेस में उग्रवादी विचारधारा के उद्भव के क्या कारण थे?
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रवाद के उदय के तात्कालिक कारण क्या थे?
- प्रश्न- बंगाल विभाजन के निहितार्थ स्पष्ट करते हुए स्वदेशी आन्दोलन का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उदार राष्ट्रवादियों की विचारधारा एवं कार्यपद्धति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय उदारवादियों के योगदान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उग्रवादी राष्ट्रीय आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके विकास के समय की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सन् 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जलियाँवाला हत्याकांड की घटना तथा उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है? खिलाफत आन्दोलन के उदय एवं विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के प्रारम्भ होने प्रमुख कारणों की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन की असफलता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- असहयोग आंदोलन के सिद्धांतों एवं कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैध शासन प्रणाली से आप क्या समझते हैं? इसकी असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा' का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ कब और किस प्रकार हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रौलेक्ट एक्ट क्या था?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा 'खिलाफत' जैसे धार्मिक आन्दोलन का समर्थन किन आधारों पर किया गया था?
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- असहयोग आन्दोलन के सिद्धान्त, कार्यक्रमों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के विषय में आप क्या जानते हैं? इसे आरम्भ करने के क्या कारण थे?
- प्रश्न- गाँधी-इरविन समझौता क्या था?
- प्रश्न- संविधान सभा का निर्माण किस प्रकार किया गया स्पष्ट कीजिए तथा अपने कार्य निष्पादन में इसे किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- भारतीय संविधान सभा की अवधारणा का विकास किस प्रकार हुआ, वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के निर्माण की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रकृति स्वरूप की चर्चा करते हुए यह भी स्पष्ट कीजिए कि क्या इसे 'वकीलों का स्वर्ग' कहा जा सकता है?
- प्रश्न- क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि भारतीय संविधान 1935 के भारत शासन अधिनियम का वृहत् संस्करण है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिए। संविधान के मुख्य प्रकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थी?
- प्रश्न- संविधान सभा द्वारा संविधान के लिए उद्देश्य प्रस्ताव क्या था? संविधान निर्माताओं के सामने संविधान निर्माण में क्या-क्या समस्याएँ थीं?
- प्रश्न- लिखित व निर्मित संविधान से अभिप्राय बताइए।
- प्रश्न- संविधान सभा को कार्य निष्पादन में किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
- प्रश्न- संविधान सभा के कार्यकरण की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट (1928) की प्रमुख सिफारिशें क्या थीं?
- प्रश्न- पं. नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव (1946) के महत्वपूर्ण प्रस्ताव क्या थे?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मौलिकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम 1935 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रारूप समिति' पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- नेहरू रिपोर्ट- 1928 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भूमिका से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य तथा महत्व बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रस्तावना के स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
- प्रश्न- 73 वें संविधान संशोधन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रकृति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान की विशालता के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में केन्द्र को शक्तिशाली क्यों बनाया गया?
- प्रश्न- भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संवैधानिक उपचारों का अधिकार पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बयालिसवें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना में किये गये सुधारों को बताइये।
- प्रश्न- एकल नागरिकता क्या है?
- प्रश्न- 'लोक कल्याणकारी राज्य' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता किन आधारों पर समाप्त हो सकती है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निर्देशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त के स्वरूप और क्षेत्र का वर्णन कीजिये। भारतीयराजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है?
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- हमारे देश में नीति निर्देशक तत्वों का कार्यान्वयन कहाँ तक हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निर्देशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) की क्या प्रक्रिया अपनाई गई है? विस्तारपूर्वक समझाइए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संविधान संशोधन की शक्ति के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 चौवालीसवें संविधान संशोधन विधेयक पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पद की योग्यतायें एवं कार्यकाल बताते हुए इस पद की संवैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया को समझाइये, उसे अपने पद से कैसे हटाया जा सकता है तथा राष्ट्रपति के पद रिक्तता की स्थिति में उसके कार्यों को कैसे सम्पादित किया जाता है?
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की स्थिति के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रधान की धारणा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री की स्थिति उसका महत्व तथा उसकी भूमिका की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संघ में प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? शासन में उसका क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारत में मंत्रिपरिषद के गठन, कार्य व शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मंत्रिमंडलीय प्रणाली की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति पद की योग्यतायें, कार्यकाल तथा निर्वाचन पद्धति बताइये।
- प्रश्न- उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या भारतीय राष्ट्रपति 'रबर स्टैम्प' है? पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (Veto Power) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 352 पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अनुच्छेद 356 पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री की विशिष्ट स्थिति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत में प्रधानमन्त्री के प्रभुत्व से वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रधानमंत्री वास्तविक कार्यपालक के रूप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रधानमन्त्री और संसद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद में प्रधानमन्त्री की स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संसद की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए। संसद के कार्य एवं शक्तियाँ बताइये।
- प्रश्न- राज्य सभा की संरचना, कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की संरचना एवं लोकसभा का कार्यकाल बताते हुए इसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा की शक्तियों एवं स्थिति का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- भारतीय लोकसभा अध्यक्ष की स्थिति, शक्तियों तथा कार्यों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संसद में कानून निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकसभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार संक्षेप में बतायें।
- प्रश्न- राज्य सभा के पदाधिकारियों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- वित्त विधेयक के सम्बन्ध में लोकसभा के क्या विशेषाधिकार हैं?
- प्रश्न- धन विधेयक एवं वित्त विधेयक के मध्य भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संसदीय व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की नियुक्ति एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकीय कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की भूमिका अथवा स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है? उसकी राज्य के शासन में क्या भूमिका और स्थिति है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री की नियुक्ति, उसके अधिकार एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए एवं मन्त्रिपरिषद एवं विधानसभा के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल, मंत्रिपरिषद तथा मुख्यमंत्री के आपसी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'केन्द्रीय अभिकर्ता' के रूप में राज्यपाल की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- राज्यपाल का निर्वाचन क्यों नहीं होता? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान के अनुच्छेद 356 के संदर्भ में राज्य के राज्यपाल की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- मुख्यमन्त्री / मन्त्री पद की पात्रता सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के 10 सितम्बर, 2000 के निर्णय की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मुख्यमंत्री चयन की राजनीति टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विधान परिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना और गठन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक समीक्षा के अधिकार का वर्णन कीजिए तथा इसका महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, शक्तियों और कार्यों की विवेचना कीजिए। इसे भारतीय संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के गठन एवं न्यायाधीशों की नियुक्ति, कार्यकाल,शपथ एवं स्थानान्तरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार या शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'सामाजिक न्याय' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- न्याय पुनः निरीक्षण की शक्ति तथा उच्च न्यायालयों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में केन्द्र राज्य सम्बन्धों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र तथा राज्यों के बीच सम्बन्धों के सुधार के लिए आप किन उपायों को आवश्यक समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राज्य स्वायत्तता (Autonomy) से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- 'सहकारी संघवाद' (Co-operative Federalism) पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वित्त आयोग के गठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास परिषद के गठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संविधान की 5वीं एवं 6ठी अनुसूची किन क्षेत्रों को विशेष दर्जा प्रदान करती है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संविधान की छठी अनुसूची किन क्षेत्रों से सम्बन्धित विशेष प्रावधान करती है?
- प्रश्न- संविधान में आदिवासी क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधान क्यों रखे गये? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत और उत्तर-पूर्व के राज्यों को लागू इनर-लाइन परमिट क्या है?
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन आयोग के संगठन एवं कार्यों अथवा शक्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निर्वाचन विषयक आधारभूत सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य निर्वाचन आयुक्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
- प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।